देखते हैं मांग कर होता हैं क्या ।।
रात काटी जाग कर, बेकल रहा ।
कुछ नहीं दिल को ख़बर होता है क्या।।
भूलना उसको तिरे बस में नहीं ।
ढूँढ ऐसा भी हुनर होता है क्या ।।
अश्क भी तो ज़हर है, बहता हुआ।
देखिए इसका असर होता है क्या।।
लब जले, साँसें जलीं, दिल भी जला ।
खाक होने से मगर होता है क्या ।।
चांद लगता है, कभी सूरज लगे।
टोटका शाम ओ सहर होता हैं क्या।।
‘रूह’ साहब अब नहीं मुमकिन सुख़न।
लफ़्ज़ नाख़ुश तो असर होता है क्या ।।