Thursday, March 27, 2025

बस जिक्र तिरा

बस जिक्र तिरा ही रूहानी है ।।
बाकी दुनिया में सब फ़ानी हैं ।।

जादू तेरी आँखों का  तौबा ।
भूला की पलकें झपकानी है ।।

तेरी यादें हैं गोया जुगनू ।
रातें  मेरी सारी नूरानी है ।।

तुझसे मिलना दीवाली जैसा।
बिछड़े तो लगता वीरानी है।।

तेरी महफ़िल में रूह की बातें।
दुनिया में सबको हैरानी है।।

Tuesday, March 18, 2025

**हाइकु** को **पहेलियों** के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास

बचपन में अमीर खुसरो की पहेलियां पढ़ीं थी, अभी ख्याल आया तो सोचा क्यों न हाइकु के साथ प्रयोग कर के देखा जाए।
तो प्रयोग करने का प्रयास किया है **हाइकु** को **पहेलियों** के रूप में प्रस्तुत करने का। 
पसंद आए तो बताएं 🙏🙏😊

**1. पहेली**
पाँव नहीं हैं,
थके ना वो फिर भी,
रोको तो भागे!

**उत्तर:**
पानी

**2. पहेली**
बड़ा ही हल्का,
सांस भर सीने में,
उड़ता फिरे!

**उत्तर:**
गुब्बारा

**3. पहेली**
 बाँटो जितना,
बढ़ता है उतना,
बड़ा अजीब!

**उत्तर:**
ज्ञान

**4. पहेली**
चपटा सिर,
मुंह है नुकीला,
नहीं है पेट।

**उत्तर:**
कील

**5. पहेली**
सफेद दाढ़ी,
हवा में वो उड़ता,
गिरे न नीचे।

**उत्तर:**
बादल 

**6. पहेली**
दो दांत वाला,
कट कट करता
काटता फिरे!

**उत्तर:**
कैंची

**ऋषिकेश खोडके "रूह"**

Monday, March 17, 2025

**उलटबांसी हाइकु**

पत्तों बिना ही 
दरख़्त ने दी छाया
धूप हंसी खूब।

घर था खाली,
बोल उठीं दीवारें,
चीखा सन्नाटा।

शून्य भीतर,
अनहद का नाद,
कौन सुनेगा?

प्यासी मछली,
जग वैतरणी में,
प्यास न बुझी ।

तन का बीज,
मन के तल पर,
खेत हैं मौन।

शब्द बहते 
गंगोत्री है मौन की,
सुनेगा कोई?

तेज धूप में,
देखो पकती छांव ,
कौन खायेगा?

अज्ञान तम,
ज्ञान दीपक तले,
सत दिखेगा?

वो अकिंचन
समाहित सबमें,
अंतस यात्रा।

Wednesday, March 12, 2025

होरी

होरी में छलिया छल कर गयो,
गुलाल अबीर हमे रंग कर गयो...
हम तो भिगोने की सोचत रहे,
 हमको ही कान्हा तर कर गयो...

होरी में छलिया छल कर गयो....

पिचकारी मारि के, तन भिगायों,
अबीर गुलाल मोहे मोहन लगायो...
हम सखियां सोचे कान्हा रंग लगावैं,
नटखट पर हाथन  छिटक कर गयो।

होरी में छलिया छल कर गयो....

होद में डारै की ठानी सबने,
राधा गोपि खींचे लाई, किसन ने,
पर छलिया प्रपंच सारा बुझ गयो,
खुद हमका होद गिराय कर गयो...

होरी में छलिया छल कर गयो....

हम रोवत बईठे संग सखिन के,
 नंदकिशोर तब बोलै हंसि के
होरी खेलें चलो सबै मिलन के 
प्रेम से रंगीलो सराबोर कर गयो...

होरी में छलिया छल कर गयो....

Friday, January 24, 2025

उम्मीदों का बोझ (ग़ज़ल)

उम्मीदों का बोझ उठा कर खड़े रहे।
कंधों को ता-'उम्र झुका कर खड़े रहे।।

खुश रहने का फ़न मालूम नहीं उनको
मुखड़ा जो बेकार फुला कर खड़े रहे।।

आँधी तूफ़ानों ने घेरा है जब भी ।
अपना हम भी पैर जमा कर खड़े रहे।।

तन्हा सा दुनिया की जब भीड़ में लगा ।
आईना सामने लगाकर खड़े रहे ।।

अपना दुख क्या "रूह" ज़माने को कहते ।
बस अपने दिल को समझा कर खड़े रहे।।

Sunday, December 15, 2024

गंध

शब्द! 
मात्र गंध होते हैं,
हृदय में उपजती अनुभूतियों की गंध।

ये गंध,
सुगंध है की दुर्गंध?
अवलंबित है इस पर की 
किसी परिस्थिति विशेष में,
आपके हृदय की भावनाएं क्या है,
वो कौन सी अनुभूति है
जो मुझको, तुमको नियंत्रित करती हैं 
क्या ये भावनाएं 
किसी मीर या किसी निराला के उद्यान से है 
या फिर किसी विक्षिप्त के 
नराधम सड़े हुए मस्तिष्क की कुंठा के बांसी अवशेष।

हर परिस्थिति में 
शब्द व्यक्त हो जाते है 
गंध बन कर बिखर जाते है 

मैने भी अनेकों बार 
अपनी अनुभूति के शब्दों की गंध
सहेजी है कविता का इत्र बना कर
और ये मेरी कविता ,
मात्र सूचीपत्र है 
मेरी उन सारी कविताओं का,
जो पन्नों से उड़ कर 
अपनी गंध फैलाने को तत्पर है।

कभी समय मिले तो
मेरी कविताओं के इत्र की गंध सूंघे जरूर,
गंध! 
सुगंध है कि दुर्गंध 
ये मैं आप पर छोड़ता हूं।

Wednesday, October 30, 2024

दिल के सहरा में (ग़ज़ल)

दिल के सहरा में तू बारिश  कर दे।
बस पूरी इक मेरी ख्वाइश कर दे।।
दर्द-ए-दिल बह जायेगा आँखों से ।
डर है कोई ना फरमाइश कर दे।।
आमादा हूं खाने को हर धोखा ।
गर चाहे तो कोई साज़िश कर दे।।
कह ना पाया मैं लफ़्ज़ों में तुमसे ।
फ़रमाइश पूरी वो दानिश कर दे।।
जी में जी आ जायेगा चारागर।
अपनी आँखों में तू जुंबिश कर दे।। 
रूह-ए-आलम बन के जो बिखरा है ।
छू ले जिसको उसको ताबिश कर दे।।