Friday, July 27, 2007

हां ! मैं तन बेचती हूं, तो क्या ?

मैं तन बेचती हूं !
हां ! मैं तन बेचती हूं, तो क्या ?

इस मंडी मे डाल गया था कोई अपना ही ,
कच्ची कली ही थी तब मै,
मुझे तो था कुछ भी पता नही |

उम्रभर का ग्रहण ,
मेरे जीवन पर लगा गया,
रातो को किसी की करने रोशन |

कई दिन और रातें भुखी ही काटी थी,
बेल्ट,लात और मुक्को से थर्थराई थी,
आखीरकार जोरजबरदस्ती से नथ किसी ने उतरवाई थी |

अब रोज़ कोई ना कोई जानवर,
नोचता है , खसोटता है जिस्म मेरा,
मर्द साले सब आदमखोर |

क्यो नहीं पुछते इनसे ,
जिन्होने अपन ज़मीर बेच डाला,
मैं तन बेचती हूं, तो क्या ?

14 comments:

ChemSachin said...

Aap ki kavita samaaj ka kadwa sach
seedhe shabdon se hote hue man me utarta hai.

Anonymous said...

पोस्टर छापवा लो

परमजीत सिहँ बाली said...

बेहतरीन रचना है।एक सच।

Pradeep Gawande said...

मर्द साले सब आदमखोर |

the social hypocrisy has been so
boldly expressed. the artistic
value of the work apart. what
strikes so brilliantly is the
the concern for human degeneration.
a brave job indeed!!!!!!!!!

अनूप शुक्ल said...

अच्छा लिखा है।

36solutions said...

दर्द व विद्रूप का सटीक चित्रण, धन्‍यवाद भाई

Unknown said...

shabdon ki sundar garima hai, antas se yadi nikale chhan ke.ek shabd hi abhut adhik hai liye hriday ke parivartan ke.aapaki poori kavita kisi ko bhi soch me dalane ke liye paryapt hain. aise hi likhate rahiye.

विजेंद्र एस विज said...

बढिया रचना लगी.

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

बिल्कुल ठीक.

Anonymous said...

ऐशोआराम के लिए जिस्म बेचती हैं ये छात्राएं
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/2240269.cms

Anonymous said...

Pradeep kaya tum mard nahi ho????

Unknown said...

अतिउत्तम....सच मे आपके भावों का कोई तोड नहीं...

Anupama said...

Don want to comment on it.....its only pain i can feel through tis poem....

Poet amazing

ऋषिकेश खोडके रुह said...

सभी पाठको का कोटि-कोटि धन्यवाद , आपकी टिप्पणीयों से मेरा इस प्रकार की कवितायें लिखने का साहस बढा है |