Wednesday, January 10, 2024

शह और मात का खेल है (ग़ज़ल)

शह और मात का खेल है।
राजनीति बड़ी चुड़ैल है।।
कांधे पर जुआ ज़िंदगी का
आदमी कोल्हू का बैल है।।
भीड़ ही भीड़ दूर तलक ।
सब और रेलम पेल है।।
अपने जी का करोगे कैसे।
दूसरों के हाथ नकेल है।
मन का घड़ा भरता नहीं।
क्या किसी के पास गुलेल है।।
**ऋषिकेश खोडके "रूह"**

3 comments:

Sweta sinha said...

बहुत अच्छी गज़ल सर
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १२ जनवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

सुशील कुमार जोशी said...

वाह

Sudha Devrani said...

वाह!!!
बहुत सटीक..
लाजवाब👌👌