एक काव्य पाठ में जहां विषय बच्चन जी की मधुशाला था, कुछ प्रेरित होकर लिखने का प्रयास किया था।
अंतस की प्यास बुझाने, भटक रहा है मतवाला।
हर द्वार से लौटा खाली, कहीं नही है अब हाला।।
ह्रदय चषक रिक्त पड़ें है, प्रीत के सारे प्याले सूखे।
रिश्तों की निर्जनता मे, कहां मैं पाऊं मधुशाला।
परागकण ज्यों भंवर चूसे, मधु पिए पीनेवाला।
और और का करे क्रंदन,रिक्त होते ही प्याला।
क्षण भर विलंब भी बन जाए जहां पर ज्वाला।
अविरत वहां मधु छलकाए देखो मेरी मधुशाला ।
व्यतीथ हृदय का एक उपाय हाला हाला हाला।
उमंग में भी मदिरालय की राह पकड़े पीनेवाला।
पूर्णिमा हो जीवन में या फिर हो चाहे अंधियारा
पीनेवाले का हर क्षण साथ निभाए मधुशाला ।।
जात धर्म कोई ना देखे, देखे सिर्फ मधुबाला।
हर इक वो हाथ शुद्ध , जिस हाथ मे हो हाला।
धर्मगृह भी इस धरा पर, है जहां हथबल।
प्रेम का वहां पाठ पढ़ाए मेरी देखो मधुशाला।।