Wednesday, April 24, 2024

ग़ज़ल (ज़िंदा लेकिन मरे हुए हैं)

ज़िंदा लेकिन मरे हुए हैं ।
देखो कितना डरे हुए हैं ।।
सड़कों पर रेंगता भरोसा ।
झूठे वादे पड़े हुए हैं ।।
रखना दुश्वार काबू खुद को ।
सब गुस्से से भरे हुए हैं ।।
उम्मीदें क्या क़तील को हो ।।
कातिल हाकिम बने हुए हैं ।।
कह दे अशआर रूह बाग़ी ।
शा'इर सारे डरे हुए हैं ।।
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बह्र :
हज़ज मुसद्दस अख़्र्म उश्तुर महज़ूफ़
मफ़ऊलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन
222 212 122

Thursday, April 18, 2024

ग़ज़ल


ग़ज़ल की बह्र: रमल मुसद्दस महज़ूफ़

फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन
2122       2122      212

दर्द  सारा साथ ले कर सो गए।
नैन में बरसात ले कर सो गए।।

छूट जाये ना तिरी नजदीकियां।
हाथ में हम हाथ ले कर सो गए।।

साथ हमने शब  गुज़ारी जाग के ।
ऊँघती फिर रात ले कर सो गए।।

थक गए जब जाग के तो आख़िरश।
मौत की सौगात ले कर सो गए ।।

ग़म भुलाने को लिखे थे रूह जो 
साथ वो नग़मात ले कर सो गए ।।
**ऋषिकेश खोडके "रूह"**

Wednesday, April 17, 2024

ग़ज़ल

तूफाने ज़ीस्त में जलना नहीं आसाँ।।
गिर के फिर से संभलना नहीं आसाँ।।
क्या तेरे मिरे,जज़्बात हैं सबके ।
इन्हें अल्फ़ाज़ में बदलना नहीं आसाँ।।
सुरत बदलकर मिलते हैं सभी सब से ।
हमेशा चेहरा बदलना नहीं आसाँ।।
ज़रूरत तो इक दलदल गहरा सा है।
फंसे तो बाहर निकलना नहीं आसाँ।।
भरे बाज़ार हैं मौका-परस्तों से ।
यहां ईमान पे पलना नहीं आसाँ ।।
कभी तो वक़्त बदलेगा है उम्मीद।
हमेशा हसरत कुचलना नहीं आसाँ।।
बुलंदी रूह सौदा बहुत मुश्किल।
बुलंदीयों पे संभलना नहीं आसाँ।।

बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222

1 2 2    2 1   2  2 2    12। 22
तू फा ने ज़ी स्त में जलना नहीं आसाँ।।
1 2      2। 2 1 2 2 2 1222
गिर के फिर से संभलना नहीं आसाँ।।

12 22 12।  2 2 1   2 2 2
क्या तेरे मिरे। जज़्बात हैं सबके ।
12 2 2 1      2   2 2 1222
इन्हें अल्फ़ाज़ मेंब दलना नहीं आसाँ।। *में का वज़न गिराया है।

1 2    2   2   1 2   2  2 1 2 2    2
सु रत बद लक र मिलते हैं सभी सब से
1 2 2   2  1 2      2    2 1 222
हमेशा   चे। ह राब। दल ना नहीं आसाँ।। *रा का वज़न गिरायाहै

122     2  1 2  2    2   12 22
ज़रूरत तो इकद लद लग हरा सा है।
12   2 2  1  2   2   2  1222
फंसे तो बा ह रनिकलना नहीं आसाँ।।

1 2 2 2 1 2     22 1 2 2  2
भरे बा ज़ार सब मौका-परस्तों से
1 2 2 2 1 2 22   1 2  22
यहां ईमान पे पलना नहीं आसाँ।।

1 2  2     2 1 2  2  2 1 2. 22
कभी तो। वक़्त बद ले। गा है उम्मीद। +1 नियम, गा का वजन 
122   2   1 2    2  2    1222
हमेशा हस र तकु चलना नहीं आसाँ।।

1 2 2 2 1  2 2   2  1  222
बुलंदी  रूह सौदा। बहुत मुश्किल।
1 2 2 2 1  222     1222
बुलंदी यों पे संभलना नहीं आसाँ।।

Saturday, April 13, 2024

ग़ज़ल

सबसे जुदा हो गए हो।
तुम तो ख़ुदा हो गए हो ।।

इस तरह जाते हो छू कर।
गोया सबा हो गए हो ।।

नज़रें गिराना उठा के ।
कातिल अदा हो गए हो ।।

हुस्न की तारीफ़ क्या हो।
दिल की दवा हो गए हो ।। 

कौन करे चांद की बात। 
उसकी कज़ा हो गए हो।।

नाम अगर पूछ लिया।
कितना ख़फ़ा हो गए हो ।।

कैसे कहूं रूह के तुम ।
जाने जहां हो गए हो ।।

बह्र : रज्ज़ मुरब्बा मतवी
मुफ़तइलुन मुफ़तइलुन
21122112





Wednesday, April 3, 2024

ग़ज़ल

लौ-ए-इश्क़ को हवा न दे।
कही तुझको जला न दे।।
ज़िक्र-ए-इश्क नामंज़ूर।
कोई तुझको बता न दे।।
बांध कर रखो जुल्फों को।
बाद-ए-शोख उड़ा न दे।।
चांद फिरे है इतराता।
रूख तिरा कोई दिखा न दे।
न पूछ राजे-दिले-रूह।
चीर के सीना दिखा न दे।।