Tuesday, October 15, 2024

टिकट व्यवस्था

भगवान भी देख कर हंसता है,
मेरे दर्शन को टिकट व्यवस्था है।
दीन के नाम पर खून की होली,
किस ने बताया, ये कौन सा रस्ता है।
दूध तेल की गंगा, नाली में बहती,
सड़क किनारे कोई भूख से खस्ता है।
रोटी के लालच में जो बदला दीन,
या तो मै सस्ता हूँ या दीन सस्ता है
नाम अलग दुकान सारी एक सी ,
मूर्ख इंसान देख कर भी फंसता है।

7 comments:

Sweta sinha said...

भगवान के नाम पर हो रहे गोरगधंधे ने बहुत आहत किया है । अगर हम अपने सम्प्रदाय को सर्वोच्च स्थान पर सुशोभित देखना चाहते हैं सबकी दृष्टि में सम्मान देखना चाहते हैं तो इसमें निहित आडंबरों से मुक्त करना ही होगा।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ अक्टूबर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

सुशील कुमार जोशी said...

वाह

Anita said...

सटीक और समसामयिक रचना

शुभा said...

वाह! सुन्दर और सटीक!

Jyoti khare said...

वर्तमान के सच को उजागर करती अच्छी रचना

Sudha Devrani said...

बहुत सटीक सामयिक सृजन
वाह!!!

नूपुरं noopuram said...

चुभती हुई दो टूक बात । सटीक।