घनन-घन-घन,मेघ गाये मल्हार, अली री !
घनन-घन-घन,मेघ गाये मल्हार
चमक-चम-चम बिजुरीया चमके,
छमक-छम-छम पानी की बौछार, अली री
घनन-घन-घन,मेघ गाये मल्हार
कल-कल-कल-कल,संगीत नदी का,
सर-सर-सर-सर , करे आम की डार, अली री
घनन-घन-घन,मेघ गाये मल्हार
हरीतिमा ओढे, बैठी धरती लजाई,
और सतरंगी श्रावन करे श्रुंगार , अली री
घनन-घन-घन,मेघ गाये मल्हार
पंख फैलाये वन नाचे मयूरा
पिहु-पिहु-पिहु-पिहु, पपीहे की पुकार , अली री
घनन-घन-घन,मेघ गाये मल्हार
Wednesday, June 18, 2008
सावन रुत आयी
सावन रुत आयी
रिमझिम मेघा बरसे,
मेह झरे अंबर से,
घनाघन घन गरजे,
हरीतिमा है छायी |
पीहू-पीहू बोले पपीहा,
कुहू-कुहू कोयलीया,
हर्षाये धरा का जीया,
तन जो बुंदे भिगायी |
बहे झरने झर-झर ,
करे समीर फर-फर,
आकाश से आयी उतर,
अमृता गंगा मायी
रिमझिम मेघा बरसे,
मेह झरे अंबर से,
घनाघन घन गरजे,
हरीतिमा है छायी |
पीहू-पीहू बोले पपीहा,
कुहू-कुहू कोयलीया,
हर्षाये धरा का जीया,
तन जो बुंदे भिगायी |
बहे झरने झर-झर ,
करे समीर फर-फर,
आकाश से आयी उतर,
अमृता गंगा मायी
Tuesday, February 19, 2008
मतलब का शब्द
शब्दों के मतलब तो मिलते हैं,
मतलब का शब्द नहीं मिलता,
अक्षरों के मात्र संकर ही से,
अर्थ का फूल नहीं खिलता |
पत्थरों की पोशाकों के पिछे,
दरारें ही दरारें हैं सीनों मे,
बाहर पैबंद खुबसुरत है,
कोई अंदर से नही सिलता |
फासलों की दिवारें सब जगह,
मुल्क,प्रदेश,जाति,पंथ,भाषा,
लाल रंग तो गिरे है इनके लिये,
बस एक फ़ासला नही गिरता |
मतलब का शब्द नहीं मिलता,
अक्षरों के मात्र संकर ही से,
अर्थ का फूल नहीं खिलता |
पत्थरों की पोशाकों के पिछे,
दरारें ही दरारें हैं सीनों मे,
बाहर पैबंद खुबसुरत है,
कोई अंदर से नही सिलता |
फासलों की दिवारें सब जगह,
मुल्क,प्रदेश,जाति,पंथ,भाषा,
लाल रंग तो गिरे है इनके लिये,
बस एक फ़ासला नही गिरता |
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