सावन रुत आयी
रिमझिम मेघा बरसे,
मेह झरे अंबर से,
घनाघन घन गरजे,
हरीतिमा है छायी |
पीहू-पीहू बोले पपीहा,
कुहू-कुहू कोयलीया,
हर्षाये धरा का जीया,
तन जो बुंदे भिगायी |
बहे झरने झर-झर ,
करे समीर फर-फर,
आकाश से आयी उतर,
अमृता गंगा मायी
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1 comment:
इसके पूर्व जो कविता मैने पढ़ी उक्त भाव इस कविता को भी समर्पित करता हूँ।
बधाई स्वीकार कीजिए
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