बदले हुए हैं मंजर हम ख़ामोश है।
सब आंखों में समंदर हम ख़ामोश है।।
नफ़रतें ज़हन में बसेरा कर चुकी।
देख हाथों में खंजर हम ख़ामोश है।
जंगल पर्वत नदिया बर्बाद कर चुके।
जमीं हो रही बंजर हम ख़ामोश है।।
शमशीर ली उठा जो काटे नाखून।
कर दुनियां खंडर हम ख़ामोश है।।
हालात बदलना मुश्किल भी नहीं।
पर मान के मुकद्दर हम ख़ामोश है।।
**ऋषिकेश खोडके "रुह"**
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