ग़ज़ल की बह्र: रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन
2122 2122 212
दर्द सारा साथ ले कर सो गए।
नैन में बरसात ले कर सो गए।।
छूट जाये ना तिरी नजदीकियां।
हाथ में हम हाथ ले कर सो गए।।
साथ हमने शब गुज़ारी जाग के ।
ऊँघती फिर रात ले कर सो गए।।
थक गए जब जाग के तो आख़िरश।
मौत की सौगात ले कर सो गए ।।
ग़म भुलाने को लिखे थे रूह जो
साथ वो नग़मात ले कर सो गए ।।
**ऋषिकेश खोडके "रूह"**
2 comments:
सुन्दर
बहुत सुन्दर
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