Friday, April 4, 2025

जइयो नाहीं ओ घनश्याम रे (गीत)

जइयो नाहीं ओ घनश्याम रे, जइयो नाहीं
मोरे नैना तोका निहारते, जइयो नाहीं।।


हम घूँघट उठावें के मुख तोरा प्रान भयो,
प्रीत लागी ऐसी, हियरा भी जान गयो।
लाज की रेखा जोबन लांघ गयो राम रे।
जइयो नाहीं ओ घनश्याम रे, जइयो नाहीं


बंसी की तान तोरी, सुध बिसराय,
काम काज भुलायो, दईया सब हाय।
चित चपला बंसी तोरी रसधाम रे।
जइयो नाहीं ओ घनश्याम रे, जइयो नाहीं।


चरणन की धूलि हम मांग भर लीन्ह,
खुद को तोरी अर्धभागीनी कर लीन्ह।
तो बिनु नाहीं हमारो कोऊ ठाम रे।
जइयो नाहीं ओ घनश्याम रे, जइयो नाहीं।


गागरियन फोडन पनघट पधारों,
आवन की बाट जोहै मनवा हमारो,
फोड़ौ इन गगरियन, रख्यौ सिर पै थाम रे।
जइयो नाहीं ओ घनश्याम रे, जइयो नाहीं।

2 comments:

Sweta sinha said...

बहुत सुंदर भक्ति रस में डुबाने को आतुर रचना।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ८ अप्रैल २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

Priyahindivibe | Priyanka Pal said...

बहुत सुंदर रसमय रचना