किसी से आंख मिलाओ कि ग़म की बात चले ।
जिगर में आग जलाओ कि ग़म की बात चले ।।
कहाँ अकेला वो बैठा है तीरगी ओढ़े ।
उसे चराग़ दिखाओ कि ग़म की बात चले ।।
तमाम उम्र सुलगती है हिज्र की सिगड़ी ।
धुआं जरा सा उड़ाओ कि ग़म की बात चले ।।
कभी सुकून मिला है कहीं दिल-ए-मुर्दा ।
सुकूँ पे ख़ाक उड़ाओ कि ग़म की बात चले।।
अगर बयान करे "रूह" हाल सब दिल का ।
ज़रा उन्हें भी बताओ कि ग़म की बात चले।।
3 comments:
बढ़िया ग़ज़ल।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ०४ अक्टूबर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत शुक्रिया
ग़म की बात चले तो बादल छटें। बहुत खूब !
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