आरामपसंद भी हो जायेंगे ।
बिस्तर पर बांस के सो जायेंगे।।
ख्वाहिशें कुछ अब भी बाकी है।
और यम कहता है चलो जायेंगे।।
दुआ मांगों देख डूबता सितारा।
अरमान मुकम्मल हो जायेंगे।।
ख्वाबों को अपने जिंदा रखना।
वक्त की आंधी में ये खो जायेंगे।।
भेड़ चाल में फंस कर रह गए।
अकेले अब कहीं चलो जायेंगे।।
कुछ घूंट बचे हैं ज़ीस्त के साकी।
अब पीकर हम इसको जायेंगें।।
रूह कहे सब अजर अमर है।
सिर्फ बदल जिस्म ही तो जायेंगे।
**ऋषिकेश खोडके "रूह"**
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