हिंदी भाषा का उपवन, विविध बोलियों भरा,
हर बोली में मिठास, भावों का खज़ाना भरा।
कविता की क्यारी में, खिले छंदों के फूल,
राग रागिनीयों भरे, ये गीतों के संकुल
कहानी की बेलों पर, शब्दों की छाया,
हर पन्ने पर बिखरी हुई, अनुभवों की माया।
दोहे, चौपाई, सोरठा, जैसे मोती धरे,
भक्ति गंगा बहते, मन को निर्मल करें।
नाटकों के रंग से, रंगती है फुलवारी,
जीवन की सब सच्चाई, दिखती इसमें सारी।
हिन्दी साहित्य की शाखें, फैलीं दूर तलक,
समस्त धरा पर, बिखरी हिंदी की महक।
गद्य का वृक्ष विशाल, विधा की शाखें अनमोल,
तने पर अंकित, व्याकरण के अनमोल बोल ।
निबंधों की टहनियाँ, परिष्कृत सुविचार,
प्रश्नों के उत्तर में, मिले जीवन की सार।
इतिहास की धरोहर, इसमें होती जीवंत,
भविष्य की राह दिखाते, पुरातन सब ग्रंथ।
संस्मरण की कलियाँ, जो महकती हैं यादों में,
हिंदी की बयार से, लिखी जाती फ़सानों में।
हिंदी का ये उपवन, हमारी संस्कृति का गान,
अभिव्यक्ति का प्राण, हमारी आन बान शान ।
ऋषिकेश खोड़के "रूह"
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