सामने वो पहाड़ी,
हरे समंदर में डूबी सी,
नीले आसमान के
जबीं को चूमती,
खड़ी अकेली
लाल मिट्टी से गुजरता रास्ता,
जैसे वक्त की लकीरें हों,
ज़मीन पर उकेरी हुई।l
ज़मी की जुल्फों से
घास के लहराते गेसू,
हवा से बातें करते,
डाकिया बादल,
उम्मीदों के ख़त लिए बहते।
खयालों के मानिंद
आसमान का रंग बदलता,
कभी हल्का, कभी गहरा,
बिन बोले ही सब कहता।
किसी बिछड़े मोड़ पर
पल भर ठहर कर,
एक नज़र डालूं,
शायद ये सफर भी
गुजरी कहानी का हिस्सा हो।
उस पहाड़ी की चोटी पर,
कुछ जवाब मिलेंगे,
या शायद बस सवाल ही
हवाओं में पत्तों से बिखर जाएंग
12 comments:
अति मनमोहक रचना ,भावों की विह्वल निर्झरी।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ सितम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
वाह ! प्रकृति का मनमोहक वर्णन , सुंदर उपमानों के साथ !
सुन्दर
वाह ! प्रकृति के अनुपम रूप को निखारतीं उतनी ही सुंदर पंक्तियाँ !!
बहुत सुन्दर
वाह 👍 बहुत ही सुन्दर
धन्यवाद श्वेता जी
धन्यवाद मीना जी
धन्यवाद सुशील जी
धन्यवाद अनिता जी
धन्यवाद आलोक जी
धन्यवाद
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