Saturday, September 14, 2024

वो पहाड़ी

सामने वो पहाड़ी, 
हरे समंदर में डूबी सी, 
नीले आसमान के 
जबीं को चूमती, 
खड़ी अकेली

लाल मिट्टी से गुजरता रास्ता,
जैसे वक्त की लकीरें हों, 
ज़मीन पर उकेरी हुई।l 

ज़मी की जुल्फों से
घास के लहराते गेसू, 
हवा से बातें करते, 
डाकिया बादल, 
उम्मीदों के ख़त लिए बहते।

खयालों के मानिंद 
आसमान का रंग बदलता, 
कभी हल्का, कभी गहरा, 
बिन बोले ही सब कहता।

किसी बिछड़े मोड़ पर 
पल भर ठहर कर, 
एक नज़र डालूं, 
शायद ये सफर भी 
गुजरी कहानी का हिस्सा हो।

उस पहाड़ी की चोटी पर, 
कुछ जवाब मिलेंगे, 
या शायद बस सवाल ही 
हवाओं में पत्तों से बिखर जाएंग

12 comments:

Sweta sinha said...

अति मनमोहक रचना ,भावों की विह्वल निर्झरी।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ सितम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

Meena sharma said...

वाह ! प्रकृति का मनमोहक वर्णन , सुंदर उपमानों के साथ !

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर

Anita said...

वाह ! प्रकृति के अनुपम रूप को निखारतीं उतनी ही सुंदर पंक्तियाँ !!

आलोक सिन्हा said...

बहुत सुन्दर

Anonymous said...

वाह 👍 बहुत ही सुन्दर

Rishikesh khodke said...

धन्यवाद श्वेता जी

Rishikesh khodke said...

धन्यवाद मीना जी

Rishikesh khodke said...

धन्यवाद सुशील जी

Rishikesh khodke said...

धन्यवाद अनिता जी

Rishikesh khodke said...

धन्यवाद आलोक जी

Rishikesh khodke said...

धन्यवाद