Wednesday, July 2, 2025

दुआओं में असर (ग़ज़ल)

ये दुआओं में असर होता हैं क्या ।
देखते हैं मांग कर होता हैं क्या ।।

रात काटी जाग कर, बेकल रहा ।
कुछ नहीं दिल को ख़बर होता है क्या।।

भूलना उसको तिरे बस में नहीं ।
ढूँढ ऐसा भी हुनर होता है क्या ।।

अश्क भी तो ज़हर है, बहता हुआ।
देखिए इसका असर होता है क्या।।

लब जले, साँसें जलीं, दिल भी जला ।
खाक होने से मगर होता है क्या ।।

चांद लगता है, कभी सूरज लगे।
टोटका शाम ओ सहर होता हैं क्या।।

‘रूह’ साहब अब नहीं मुमकिन सुख़न।
लफ़्ज़ नाख़ुश तो असर होता है क्या ।।

Sunday, June 22, 2025

**पांडुरंग हरी**

श्री हरी विट्ठल,श्री हरी विट्ठल , 
श्री हरी विट्ठल,श्री हरी विट्ठल ।
भक्तों का सखा वो, भक्तों की माऊली ।।

पुंडरीक निवेदन का जिसने मान रखा,
कमर रख कर हाथ, हुआ ईंट पर खड़ा,
भक्त की मांग पर सदा वहीं बस गया
जाती पंथ छोड़ के, प्रेम डोर बांध ली ।

श्री हरी विट्ठल,श्री हरी विट्ठल , 
श्री हरी विट्ठल,श्री हरी विट्ठल ।
भक्तों का सखा वो, भक्तों की माऊली ।।

नामा के पुकारा उसको, तुका ने पुकारा,
ज्ञानोबा माऊली ने तन मन धन उतारा,
जन जन के मन आंगन, पांडुरंग जगाया,
गाते नाचते अब सब करे वारी पंढरी ।

श्री हरी विट्ठल,श्री हरी विट्ठल , 
श्री हरी विट्ठल,श्री हरी विट्ठल ।
भक्तों का सखा वो, भक्तों की माऊली ।।

जात पात कोई नहीं, नहीं तुच्छ महान ,
आत्मा सब एक है,विठुराया का ज्ञान ,
वारकरी का पांडुरंग, माऊली ही प्राण,
तर जाए डोर जो माऊली की थाम ली।।

श्री हरी विट्ठल,श्री हरी विट्ठल , 
श्री हरी विट्ठल,श्री हरी विट्ठल ।
भक्तों का सखा वो, भक्तों की माऊली ।।

पंढरी का विठ्ठल, सदा भक्तों के साथ,
भक्त पुकारे जब , पाए विठ्ठल साक्षात,
कहे "रूह" सबके मनकी, पांडुरंग को ज्ञात,
दुख हरे, हरे पीड़ा, प्राचीती विठू नाम की ।

श्री हरी विट्ठल,श्री हरी विट्ठल , 
श्री हरी विट्ठल,श्री हरी विट्ठल ।
भक्तों का सखा वो, भक्तों की माऊली ।।

Thursday, June 19, 2025

पत्नी की तारीफ (शादी की सालगिरह विशेष)

अपनी शादी की सालगिरह सोचा काव्यमय मनाऊं ।
चैट जीपीटी से  पत्नी की तारीफ में कविता लिखवाऊं।

चैट जीपीटी को ओपन कर बोला,
भाई पत्नी की तारीफ में चार पंक्तियां बताना।

चैट जीपीटी बोला 

महोदय !
समग्र अंतरजाल खाली पड़ा है,
ऐसा कोई उदाहरण नहीं वहां है,

आप के पास ही कोई शब्द है,
तारीफ का तो बतलाना !
खामखां मुझसे झूठ ना बुलवाना।

Tuesday, June 10, 2025

नटखट कन्हैया

पनिया भरन कूप जाऊं कैसे मईया ।
गगरीया फोर देत नटखट कन्हैया ।।

पनिया भरन कूप जाऊं कैसे मईया ।

भीगी मेरी अंगिया, भीगी मेरी चोली ,
कितना सहूं मुए कान्हा की ठिठोली ,
अखियां दिखाऊं तो और इतराए है,
हाथ उगराऊं तो पकड़ ले बहियां।।

पनिया भरन कूप जाऊं कैसे मईया ।

चरखी बंधी कभू,काट देत पगहा ,
चुटिया खींचें कभू खींचें चुनरवा,
कूद जात कूप कभी लेकर ग्वाले,
बिपदा ही जनमि ये गोकुल नगरिया।

पनिया भरन कूप जाऊं कैसे मईया ।

ठाडे रहें पथ में , घोर उधम मचावे,
कभू मोहे कभू मोरी सखियां सतावे,
काहू जतन माई, कर अपने लला का,
सर फोर दूंगी मैं लेकर लकड़ियां।।

पनिया भरन कूप जाऊं कैसे मईया ।

Wednesday, June 4, 2025

ज़िंदगी (ग़ज़ल)

जिंदगी तू कमाल  है ।  
तोहफा बेमिसाल है ।।  

खुद से खफा हों किसलिए ।  
हर घड़ी ये सवाल है ।।  
  
ठोकरें लाख राह  में  
रोक सकें मजाल  है ।।  
  
जीत पड़ाव आख़िरी ।  
हार तो एक  ख्याल है।।  
  
जिस्म को रूह छोड़ कर ।
जाए कहां सवाल है ।।

Saturday, May 31, 2025

इतना हत-बल किसलिये (ग़ज़ल)

इतना हत-बल किसलिये।
सत्य निर्बल किसलिये?

धर्म धंधा हो चुका ।
अब गंगा जल किसलिए?

कर्म तो बे मोल हैं ।
जात पर बल किसलिए?

भीख में हक़ मांगते।
लोक दुर्बल किसलिए?

एक सोफा चाहिये।
और जंगल किसलिए?

खेत में सीमेंट जब ।
हाथ में हल किसलिए?

सच अगर क़ाबिल नहीं।
रूह पागल किसलिए?

Friday, May 30, 2025

शब्द

 भावना मेरी  
शब्दों के सहयोग से,
अभिव्यक्त होती हैं जब,
कविता हो जाती ।

कोई शब्द 
अश्रु हो जाता है,
शब्द कोई कभी 
हृदय का स्पंदन।

कभी कभी शब्द 
विलाप भी हो जाते हैं।
शब्द कभी कभी,
अट्टहास का रूप धरते हैं।

शब्द कोमल रूप में,
अद्भुत ममता में ढल जाते हैं।
शब्द हर जिम्मेदारी लिए 
आदर्श पिता बन जाते हैं।

शब्द कभी होते हैं माध्यम 
चंद्र रूपणी नायिका।
शब्द बहुधा प्रेमिका के 
मृगनयन की माया दिखाते हैं।

शब्द दर्पण भी हैं ,
स्वयं का सत्य दर्शाते हैं।
शब्द शंखनाद भी हैं,
उद्घाटित करते हैं अंतर के स्वर।

शब्द अतंर में उद्घाटित,
ध्वनि हैं ध्यान की , शून्य की।
शब्द पवित्र अनुगूंज भांति,
रचयिता नाद ब्रम्ह हो जाते हैं।

शब्द चेतना जगाती,
गुरुमुख वाणी हैं,
शब्द अनादि काल से,
निर्वाण है समाधि है ।

शब्द मुखौटा हैं 
विरह, वेदना, विलाप,
प्रेम, प्रीत, प्रमोद,
माया, ममता, मां,
हर रूप का,। 
बस विचार करें ।

शब्द!
हां शब्द!
संचय कर के रखिए।
वैसे ही जैसे रखते थे ऋषि 
क्योंकि,
शब्द अद्भुत होते हैं ,
शब्द मात्र अर्थ नहीं ,
बहुधा अर्थात भी होते है ।