Tuesday, October 15, 2024

इतना भी ना रुला मुझे (ग़ज़ल)

इतना भी ना रुला मुझे,
अश्क दे ना बहा मुझे।
हर ख़ता की सज़ा कुबूल ,
अर्ज़ न तू भुला मुझे।
दर्द बढ़े दवा लगे,
हो सके तो सता मुझे।
बात न जो कही गईं ,
बोल बता सुना मुझे।
"रूह" का आख़िरी सफ़र,
आग़ लगा जला मुझे।

Tuesday, October 8, 2024

मैं ही मेरे जैसा (**ग़ज़ल**)

मैं ही मेरे जैसा और ना कोई ।
ऐसा वैसा कैसा और ना कोई ।।

ग़म के बादल भी सूखे आँखों में । 
बूँदों को यूं तरसा और ना कोई ।।

दिल की बातें कैसे कह दूँ, सबसे ।
गहरा रिश्ता ऐसा, और ना कोई ।।

हाथों की रेखा में उलझा रहता ।
शायद इंसाँ जैसा और ना कोई ।।

अपनी ख़ुश्बू जब बाँटी उससे तो ।
यूँ महका वो जैसा, और ना कोई ।।

उसके ग़म में टूटा हद से ज़्यादा ।
चुप है जैसे गूँगा, और ना कोई ।।

उसके चेहरे पर मत होना आशिक़ ।
उसके जैसा छलिया और ना कोई ।।

यादों का शो'ला है दिल के अंदर ।
मेरे दिल सा जलता और ना कोई ।।

सब कुछ जाने अपने बारे में "रूह"।
खुद को इतना समझा, और ना कोई ।।

**ऋषिकेश खोडके "रूह"**
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Thursday, October 3, 2024

देवी ब्रह्मचारिणी

1. 

स्वर्ण हिमालय की कुमारी,
पार्वती सरस रूप धारी,
तप की धारा-सी निर्मल,
शांत, मनोहर, कोमल।

2. 

अंजुलि में माला झलके,
कमंडल संग कर मधुरिम,
श्वेतवस्त्र सी शीतल छवि,
दीप्त ज्योति, कांति अमरिम।

3. 

नारद के वचन सुने जब,
जागी साधना अपार,
शिव-भक्ती का दिप जलाकर,
हिमगिरि पथ चली उदार।

4. 

त्यागे दिये सुख भोग सारे,
भूल गईं सारा संसार,
पर्णाहार व्रत कर धारण,
की कठिन तपस्या अपार।

5. 

भुखे-प्यासे तप किया अथक,
ध्यान-लीन, संकल्प महान,
शिव-प्रेम में बन बैठीं,
वैरागिनी की मूर्ति प्रधान।

6. 

सृष्टि के सारे कण-कण में,
शक्ति का संचार किया,
तप की प्रखर ज्वाला से,
भवसागर को पार किया।

7. 

संयम की महा प्रतिमा,
शांति-व्रत सिखाती है|
भक्तों के मन का हर संशय,
मोह-अज्ञान मिटाती हैं|

8. 

पूजा में जो ध्यान करे,
मिटते संकट अपार,
धैर्य का पाठ सिखलाये,
जीवन को दे नव विस्तार।

9. 

अध्यात्म की इस अग्नि से,
जग का तम हर जाती हैं,
शक्ति का संचार कर,
भक्ति से भाव जगाती हैं।

10. 

दास ऋषिकेश कहे, जपो,
ब्रह्मचारिणी रूप का नाम,
शांति, धैर्य, तप से पाओ,
जीवन का परमाधाम।

Wednesday, October 2, 2024

ग़म की बात चले (ग़ज़ल)

किसी से आंख मिलाओ कि ग़म की बात चले ।
जिगर में आग जलाओ कि ग़म की बात चले ।।

कहाँ अकेला वो बैठा है तीरगी ओढ़े ।
उसे चराग़ दिखाओ कि ग़म की बात चले ।।

तमाम उम्र सुलगती है हिज्र की सिगड़ी ।
धुआं जरा सा उड़ाओ कि ग़म की बात चले ।।

कभी सुकून मिला है कहीं दिल-ए-मुर्दा ।
सुकूँ पे ख़ाक उड़ाओ कि ग़म की बात चले।।

अगर बयान करे "रूह" हाल सब दिल का ।
ज़रा उन्हें भी बताओ कि ग़म की बात चले।।

Monday, September 30, 2024

देव का दूत

इक बार यूं हुआ की,
धरा पर
श्री नारद जी
मनुष्यों से टकरा गए,

असमंजस में पड़े,
हकबका गए,
सुर असुर यक्ष राक्षस  
हर एक को किया है
अपनी वाणी के वश।
पर मनुष्य पर किसका वश।
इंसानों का पर देवलोक में भी 
रिकॉर्ड बड़ा खराब है 
इंद्र देव के कड़े हैं इंस्ट्रक्शन,
न मुंह लगें मानवों के,
मति इनकी बर्बाद है।

पर मरते ना क्या करते
सामना हो चुका था
जानते थे शीश झुकाए खड़े हैं मानव,
आशीर्वाद का समय आ पड़ा था।
डर था कुछ मांग ना ले उल्टा सीधा
7 12 के एग्रीमेंट को ले कर 
स्वर्ग में इन्द्र जी को वैसे भी डर था,
जल्दबाजी में तुरंत दिया आशीर्वाद ,
अंतर्ध्यान हो गए,
आशीर्वाद में मनुष्यों को बनो 
देव का दूत कह गए।

यहीं ! यहीं इस घटना को आया उपद्रव का स्वरूप
शीघ्रता में नारद जी ने नही बताया,
किस देव का दूत।
मनुष्य की मति देखो कितनी अद्भुत,
वो अब धरा पर बन बैठे हैं,
यमदूत यमदूत यमदूत।

Saturday, September 21, 2024

मर जाऊं तो मत रोना

मर जाऊं तो मत रोना, मेरे गीत कविता गा देना,
यादें मेरी औढ़ के तुम, इक दुनिया नई बसा लेना।

मस्ती में जो हंसता हूं, जोश में आके बहकता हूं,
हर गली, हर राह में, मैं झूमता हूं, उछलता हूं।
याद करना इस पल को, जब नही मैं संभलता हूं,
इन रंगों में मेरी मस्ती का इक रंग लगा देना।

मर जाऊं तो मत रोना, मेरे गीत कविता गा देना।

नज़्मों में जो लिखता हूं, मैं गीतों में जो ढूंढता हूं,
ग़ज़ल के हर शेर में , मै अपना जहाँ बुनता हूं।
किताबों में खो जाता हुं, सपनों में उड़ जाता हूं,
तुम भी मेरे लफ़्ज़ों में, ये रूह मेरी पा लेना।

मर जाऊं तो मत रोना, मेरे गीत कविता गा देना।

वो जंगल वो पर्वत, जहाँ मैं खो सा जाता हूं,
वादियों की सदाओं में सांसें दिल की पाता हूं 
आवाज दे कर जहां, नीले आसमां को बुलाता हुं ,
उन सदाओं को तुम मेरी यादों का गीत सुना देना।

मर जाऊं तो मत रोना, मेरे गीत कविता गा देना।

मेरी मस्ती हो, किताबें हों, या हों वो ऊँची चोटियां,
हर जगह में बसा हूं मैं, मेरी अपनी सब बस्तियां,
सदा रहूंगा पास तुम्हारे, बस एक बार दिल से सदा देना,
मर जाऊं तो मत रोना, मेरे गीत कविता गा देना।

Monday, September 16, 2024

विरहोत्कंठिता नायिका 1

तुम बिन यह हृदय शून्य सा,
जैसे नभ! बिन तारे।
तुम बिन यह जीवन मेरा,
वीणा तार बिना रे।
प्रेम की मीठी धारा में,
लवण विरह का घुल रहा है 
तुम बिन प्रिय इस मन को,
चुभ जैसे कोई शूल रहा है।

तुम्हारी छवि नयनों में,
जैसे सुधि का कोई दीप हो।
प्रभात बिना यह दीर्घ रात्रि,
जैसे पतझर का एक गीत हो।
तुम बिन यह काया मेरी,
जैसे नीरव बंसी बन गई,
ज्यों ज्यों मिलन की आस छूटी,
समस्त हृदय क्रिया थम गई।

यमुना के तट पर तेरी,
अब भी प्रतीक्षारत है सखी।
क्षुब्ध नयन पग धरे 
तुम बिन कब तक रहे रुकी।
आकाश में बिखरी हुई,
चंद्रिका भी अब नही ठहरती 
तुम बिन यह धरा मुरझाई,
पुष्प गुच्छों से नहीं संवरती 

मन व्याकुल मिलन पल को,
तेरी बंसी की तान सुनूँ।
मुरलीधर कान्हा नयनों में, 
बस मैं तुम्हें ही चुनूँ।
प्रिय, ये मन का तम मिटाओ,
हृदय के पाश को खोलो,
दर्शन अपने करवाओ,
कर्ण में मेरे तुम बोलो  

प्रिय! कब देखूँ वह हास,
जिससे जगत संजीवित हो।
अरज सुन लो राधा की ,
अब यह विरह सीमित हो।
तुम आओ प्रियतम कान्हा,
अब यह पीड़ा हर लो,
स्नेह-सुधा से भर दो मन,
प्रियतम! हाथ मेरा धर लो।


विरहोत्कंठिता नायिका संस्कृत नाट्यशास्त्र और काव्यशास्त्र में एक प्रमुख नायिका भेद है। इस नायिका का वर्णन उस स्त्री के रूप में किया जाता है जो अपने प्रिय से दूर होने के कारण अत्यधिक व्याकुल होती है। वह विरह की वेदना और मिलन की आकांक्षा से पीड़ित रहती है।