भावना मेरी
शब्दों के सहयोग से,
अभिव्यक्त होती हैं जब,
कविता हो जाती ।
कोई शब्द
अश्रु हो जाता है,
शब्द कोई कभी
हृदय का स्पंदन।
कभी कभी शब्द
विलाप भी हो जाते हैं।
शब्द कभी कभी,
अट्टहास का रूप धरते हैं।
शब्द कोमल रूप में,
अद्भुत ममता में ढल जाते हैं।
शब्द हर जिम्मेदारी लिए
आदर्श पिता बन जाते हैं।
शब्द कभी होते हैं माध्यम
चंद्र रूपणी नायिका।
शब्द बहुधा प्रेमिका के
मृगनयन की माया दिखाते हैं।
शब्द दर्पण भी हैं ,
स्वयं का सत्य दर्शाते हैं।
शब्द शंखनाद भी हैं,
उद्घाटित करते हैं अंतर के स्वर।
शब्द अतंर में उद्घाटित,
ध्वनि हैं ध्यान की , शून्य की।
शब्द पवित्र अनुगूंज भांति,
रचयिता नाद ब्रम्ह हो जाते हैं।
शब्द चेतना जगाती,
गुरुमुख वाणी हैं,
शब्द अनादि काल से,
निर्वाण है समाधि है ।
शब्द मुखौटा हैं
विरह, वेदना, विलाप,
प्रेम, प्रीत, प्रमोद,
माया, ममता, मां,
हर रूप का,।
बस विचार करें ।
शब्द!
हां शब्द!
संचय कर के रखिए।
वैसे ही जैसे रखते थे ऋषि
क्योंकि,
शब्द अद्भुत होते हैं ,
शब्द मात्र अर्थ नहीं ,
बहुधा अर्थात भी होते है ।
4 comments:
शब्द विषय पर सुन्दर प्रस्तुति।
वाह! बहुत खूब!
धन्यवाद 🙏
धन्यवाद 🙏
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