Thursday, May 22, 2025

**मन का चोर**

मन का चोर मंजीरा बजाये,
भीतर भेद चुरा ले जाये।

राम नाम जाप सवेर करै वो,
रातें तम की फिर भी न जाये।

काया मंदिर, रूह है दीपक,
नाम की बाती अलख जलाये।

जोगी तन , मन नगर में घूमा,
मोह माया छम छम नचाये।

'रूह' कहे जोगी ध्यान लगा ले,
तीरथ विरथ सब अंतस समाये ।। 

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