मन का चोर मंजीरा बजाये,
भीतर भेद चुरा ले जाये।
राम नाम जाप सवेर करै वो,
रातें तम की फिर भी न जाये।
काया मंदिर, रूह है दीपक,
नाम की बाती अलख जलाये।
जोगी तन , मन नगर में घूमा,
मोह माया छम छम नचाये।
'रूह' कहे जोगी ध्यान लगा ले,
तीरथ विरथ सब अंतस समाये ।।
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