बादलों के जंगल में
शिकारी,
जाल बिछा कर
पकड़ लो
बूंदों के सारे घोड़े ।
पैरों में नाल ठोक कर,
जरा दौड़ाओ,
बिजली के कोड़े बरसाओ ।
सावन गुज़रा जाता है,
कोई टप टप की आवाज़ नहीं अब तक ।
ऋषिकेश खोड़के "रूह"
शिकारी,
जाल बिछा कर
पकड़ लो
बूंदों के सारे घोड़े ।
पैरों में नाल ठोक कर,
जरा दौड़ाओ,
बिजली के कोड़े बरसाओ ।
सावन गुज़रा जाता है,
कोई टप टप की आवाज़ नहीं अब तक ।
ऋषिकेश खोड़के "रूह"
No comments:
Post a Comment