वो दिन बचपन के बड़े अनोखे थे |
सोते समय दादी नानी की कहानियाँ,
जागो तो ढेर सारे खेल थे खिलौने थे |
तितली पकड़ने में जाता था दिन सारा,
शाम को चटपटे पकवानों के दोने थे |
अब लगाता है बड़े हुए ही क्यों कर,
वो बचपन के दिन कितने सलोने थे |
ऋषिकेश खोड़के "रूह"
सोते समय दादी नानी की कहानियाँ,
जागो तो ढेर सारे खेल थे खिलौने थे |
तितली पकड़ने में जाता था दिन सारा,
शाम को चटपटे पकवानों के दोने थे |
अब लगाता है बड़े हुए ही क्यों कर,
वो बचपन के दिन कितने सलोने थे |
ऋषिकेश खोड़के "रूह"
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