गुल पत्ते ये हवा अलग कैसे है ।
तेरा मेरा ख़ुदा अलग कैसे है ।।
है इक ही रंग लाल, सबके ख़ूँ का।
हम सारे फिर बता अलग कैसे है ।।
नदियां नाले सभी फ़ना दरिया में ।
अपना फिर रास्ता अलग कैसे है।।
ढलते ही शाम घर दिया जलता है
कह दे ना ये दुआ अलग कैसे है।
इक मंजिल रूह अलहदा हैं राहें।
फ़िरकों का राब्ता अलग कैसे है।।
No comments:
Post a Comment