फासिला दरमियान इतना तो न था।
सोचा था तूने जितना उतना तो न था ।।
जानते हो नज़र उठेगी तो ज़रूर।
फिर मेरे ही सामने रुकना तो न था।।
नशा हुस्न का खुद मालूम है तुमको ।
बज्म में फिर तुम्हे दिखना तो न था ।।
गुजर गया मैं, तुझे खबर भी नहीं।
खुद की मुहब्बत में चितना तो न था।।
खुद को वो रूह खुदा समझ बैठेंगे।
इस तरहा सामने झुकना तो न था ।।
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