हुस्न तेरा कोई शराब हो जैसे।
दीदों को आबे गुलाब हो जैसे ।।
तुफ़ किया देख कर अनदेखा।
चेहरे पे कोई हिजाब हो जैसे ।।
लफ्जों की रवानी यूं लबों से ।
की बजता कहीं रबाब हो जैसे।।
जुंबीश-ए-चश्म के माने हजार ।
हर अदा कोई किताब हो जैसे ।।
सिलसिला दिल हारने का रूह ।
क़ल्ब-ए-हज़ीं का खिताब हो जैसे ।।
***ऋषीकेश खोड़के "रूह"***
दीदों : आखों
आब : पानी
तुफ़ : लानत
जुंबीश-ए-चश्म : आखों की हरकत
क़ल्ब-ए-हज़ीं : उदास ह्रदय
No comments:
Post a Comment