Friday, May 3, 2024

रुक जाओ नटखट (**कवित्त**)

रुक जाओ नटखट, के निकालू तोरी होरी 
अखियां गुलाल गयो, भीगी मोरी चोली रै।
केस हुवे नीले हरे, लाल पीला रे मुखड़ा,
काहे छेडे नटखट, कर ना ठिठोली रै।
रुक रुक कहत मैं, बचन को "रूह" भागी,
पाछे भागो कान्हा हाय, खेलया रंगोली  रै।
अब तो प्रभु बचाए, पग जो आंगन पाए,
छुप रहूंगी कान्हा से, ना खेलूं होरी रै।

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