Saturday, May 11, 2024

बात मिलने की करता है (ग़ज़ल)

बात मिलने की करता है।
पर ज़माने से डरता है।।
क्या भरोसा कातिल का हो।
आस्तीं खंजर रखता है।।
दर्द  हो ना जाए शाए ।
इसलिए वो संवरता है ।।
अब्र ना छलके आँखों  से।
अश्क चश्मों में रखता है ।।
रूह क्या जी कर पाएगा ।
मौत से पहले मरता  है ।।

रचना निम्नलिखित बह्र में है:
सरे_ मुसद्दस मसकन मक़तो मनहोर
फ़ाएलातुन मफ़ऊलुन फ़े
2122 222 2

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