बात मिलने की करता है।
पर ज़माने से डरता है।।
क्या भरोसा कातिल का हो।
आस्तीं खंजर रखता है।।
दर्द हो ना जाए शाए ।
इसलिए वो संवरता है ।।
अब्र ना छलके आँखों से।
अश्क चश्मों में रखता है ।।
रूह क्या जी कर पाएगा ।
मौत से पहले मरता है ।।
रचना निम्नलिखित बह्र में है:
सरे_ मुसद्दस मसकन मक़तो मनहोर
फ़ाएलातुन मफ़ऊलुन फ़े
2122 222 2
No comments:
Post a Comment