भक्त सभी आगे पीछे है।
कीड़े मकोड़े बस नीचे है।।
फूल रही है नफरत काफ़ी।
जाने कौन इसको सींचे है।।
बढ़ जाए जो ख़ुद से आगे।
सब नीचे उसको खींचे है।।
लोक लुभावन दिखते तो हैं।
सब पकवान मगर फीके है।।
लंबी गर्दन वाले पंछी ।
संकट में आँखें मीचे है।।
तबदीली लाएंगे कैसे ।
गर्दन, नज़रें सब नीचे है।।
सच तुम रूह न करना ज़ाहिर।
सच के लिए जहां पीछे है ।।
रचना निम्नलिखित बह्र में है:
फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
22 22 22 22
4 comments:
वाह
सुन्दर
शुक्रिया
शुक्रिया
Post a Comment