आज जांभळी गांव से जूना महाबलेश्वर ट्रैक के दौरान कड़ी धूप में बीच बीच मे छांव के मिलने पर मेरी कविता
शहरों में धीमी मौत मर रही हैं छांव ।
जंगल में आराम कर रही हैं छांव ।।
ऊंचे ऊंचे दरख्तों के बीच मे से।
कभी धूप, कभी बिखर रही हैं छांव ।।
बल खाती जंगल की पगडंडियों से ।
घूमते टहलते उतर रही है छांव।।
**ऋषिकेश खोडके "रूह"**
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