वो गांव छोड़ नगर आया हैं ।
क्या सोच कर इधर आया है ।।
नकली फूल हवा पत्ते सब ।
क्या लेने वो नगर आया है ।।
जल्दी रात में सोने वाला ।
पब से देख सहर आया है ।।
इमारतों के इस जंगल में ।
दीवारों पे शजर आया है ।।
रौशनी हो गई रूम मे रूह ।
सूरज मकां उतर आया है ।।
4 comments:
बहुत बढ़िया गज़ल.सर
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३१ मई २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
वाह
सुन्दर सृजन
सुन्दर रचना
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