Thursday, May 30, 2024

वो गांव छोड़ नगर आया है (ग़ज़ल)

वो गांव छोड़ नगर आया हैं  ।
क्या सोच कर इधर आया है ।।

नकली फूल हवा पत्ते सब  ।
क्या लेने वो  नगर आया है ।।

जल्दी रात में सोने वाला  ।
पब से देख सहर आया है  ।।

इमारतों के इस जंगल में ।
दीवारों पे   शजर  आया  है ।।

रौशनी हो गई रूम मे रूह  ।
सूरज मकां  उतर  आया  है ।।

4 comments:

Sweta sinha said...

बहुत बढ़िया गज़ल.सर
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३१ मई २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

सुशील कुमार जोशी said...

वाह

Onkar said...

सुन्दर सृजन

आलोक सिन्हा said...

सुन्दर रचना