Wednesday, May 8, 2024

इश्क़ का दरख्त

इक दरख़्त है
है मन के अंदर 
तेरे इश्क़ का ।

रूमानी डालियों पर 
अरमानों के पत्ते लहराते है,
तेरे रूप की धूप,
जुल्फों की हवा से
ज़िंदगी पाते हैं।

पर वो दिन था ना,
जब तुमने 
ना जानें क्यूं मूंह फेर लिया।

इश्क़ का ये दरख़्त 
सूखता जा रहा है,
अरमानों के पत्ते,
पीले से पड़ने लगे हैं,
कुछ सूख रहें हैं,
कुछ सूख कर गिर गए हैं।

जब तुम कभी भूले से
कदम रखोगी इस जानिब,
पैरों तले 
अरमानों के सूखे पत्तों 
की आवाज़ आयेगी,
पर क्या तुझ तक पहुंच पाएगी।

क्या पहुंच पाएगी ।

7 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

वाह

आलोक सिन्हा said...

बहुत सुन्दर

Sudha Devrani said...

अरमानों के पत्ते सूखते...
अत्यंत भावपूर्ण जवं सुंदर सृजन.

Rishikesh khodke said...

धन्यवाद श्वेता जी

Rishikesh khodke said...

धन्यवाद , ऐसे ही लिखने का हौसला बढ़ाते रहिए

Rishikesh khodke said...

धन्यवाद आलोक जी

Rishikesh khodke said...

धन्यवाद सुधा जी