उम्मीदों का बोझ उठा कर खड़े रहे।
कंधों को ता-'उम्र झुका कर खड़े रहे।।
खुश रहने का फ़न मालूम नहीं उनको
मुखड़ा जो बेकार फुला कर खड़े रहे।।
आँधी तूफ़ानों ने घेरा है जब भी ।
अपना हम भी पैर जमा कर खड़े रहे।।
तन्हा सा दुनिया की जब भीड़ में लगा ।
आईना सामने लगाकर खड़े रहे ।।
अपना दुख क्या "रूह" ज़माने को कहते ।
बस अपने दिल को समझा कर खड़े रहे।।