Thursday, May 30, 2024

वो गांव छोड़ नगर आया है (ग़ज़ल)

वो गांव छोड़ नगर आया हैं  ।
क्या सोच कर इधर आया है ।।

नकली फूल हवा पत्ते सब  ।
क्या लेने वो  नगर आया है ।।

जल्दी रात में सोने वाला  ।
पब से देख सहर आया है  ।।

इमारतों के इस जंगल में ।
दीवारों पे   शजर  आया  है ।।

रौशनी हो गई रूम मे रूह  ।
सूरज मकां  उतर  आया  है ।।

Sunday, May 26, 2024

भक्त सभी आगे पीछे हैं (ग़ज़ल)

भक्त सभी आगे पीछे है।
कीड़े मकोड़े बस नीचे है।।

फूल रही है नफरत काफ़ी।
जाने कौन इसको सींचे है।।

बढ़ जाए जो ख़ुद से आगे।
सब नीचे उसको खींचे है।।

लोक लुभावन दिखते तो हैं।
सब पकवान मगर  फीके है।।

लंबी गर्दन वाले पंछी ।
संकट में आँखें मीचे है।।

तबदीली लाएंगे कैसे ।
गर्दन, नज़रें सब नीचे है।।

सच तुम रूह न करना ज़ाहिर।
सच के लिए जहां पीछे है ।।

रचना निम्नलिखित बह्र में है:
फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
22      22    22    22

Monday, May 20, 2024

हाकिम से बदजुबानी करते हैं

हाकिम से बदजुबानी करते हैं ।
चलो हम कुछ तुफानी करते हैं ।।

ख़ूब घूमे हैं जो कर के सीना चौड़ा।
आज उनको पानी पानी करते हैं ।।

भूखे रोज़ सो जाते हैं सड़कों पर।
कभी उनकी मेज़बानी करते हैं ।।

रह गई है कुछ दास्तां बिन कहे।
दास्ताँ गो उनकी कहानी करते हैं ।।

इंकलाब की ख़्वाहिश हर दिल में ।
बयां रूह की वो ज़बानी करते हैं ।।

काहे लड़ी मैं

**कलहांतरिता**: नाट्यशास्त्र के अनुसार जो नायिका पहले प्रिय से झगड़ा करती है और उसके चले जाने के बाद पछताती है 

काहे लड़ी मैं सखी पिया से।
बोले ना अब मोसे पिया रे।

बात तो थी बड़ी छोटी सी ।
बुझी ना पर मति मोटी सी ।
यूं ही पहाड़ राई का बनाया ।
सखी मैने पिया को सताया ।
अब रह रह हाय पछताऊं ।
क्या ये मैने क्या किया रे ।
बोले ना अब मोसे पिया रे।

क्या करूं सखी कैसे मनाऊं।
करूं मनुहार ,चरण पड जाऊं।
कर श्रृंगार पिया को रिझाऊं।
हुई चूक अब मैं कैसे बताऊं।
शुद्र सी बात मन न लगाना।
कहा जो न कहा जिया से ।
बोले ना अब मोसे पिया रे।

Sunday, May 19, 2024

रास पूर्णिमा

**शुक्लाभिसारिका** जो नायिका चांदनी रात में श्वेत वस्त्र धारण कर नायक अभिसार को जाती है 

शुभ्र वस्त्र देह धारण, केश काले कर संभारण।
नखशिख अंग श्रुंगारण, रास पूर्णिमा परीचारण ।।

अली री जाती राधारानी, चली बुझा के दिपदानी।
लगे यूं जैसे अरण्यानी। पकड़ी न जाय अज्ञानी ।।

देखे ना अपना पराया , बन कर ज्यूं प्रतिछाया।
हारी मन हारी काया, ये कैसी कान्हा की माया।।

भला हो पानी जमना का, शोर पाजेब का दब जाता।
किसे मिलन ये सुहाता, राधा कृष्ण, कृष्ण कृष्ण राधा ।।

Saturday, May 18, 2024

सारी मय उतर गई (ग़ज़ल)

सारी मय  उतर गई ।
जब उन पर नज़र गई ।।

हैरां चांद सोचकर ।
वो कितना निखर गई ।।

आशिक इश्क़ में जले ।
क्या उनको ख़बर गई ।।

रुप उसका तिलिस्म है ।
मंतर फूँक  कर गई ।।

नज़रें रूह तू हटा ।
दिल में वो उतर गई ।।


रचना निम्नलिखित बह्र में है:
फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
22 22 22

Thursday, May 16, 2024

प्रतिक्षा

नाट्य शास्त्र में वर्णित अष्ट नयिका में से एक नायिका "प्रोषितपतिका" पर कविता। प्रिय के वियोग से दु:खित विरहिणी नायिका को प्रोषितपतिका कहते हैं। 


मौरे नैन डगर पर, तकुं बांट बरस भर ।
न तोरी कोइ खबर पर, कब आओगे कहो तो।
प्रतिक्षा मे तुम्हारी, दिवस पूर्ण रात्री सारी |
निंद्रा न नयन उतारी, और जगाओगे! कहो तो ?
थकी मैं भैज-भैज पांती, उत्तर कुछ भी न पाती |
कब तक जीवन साथी, पत्र दे पाओगे! कहो तो ?
नित गोधुली बेला आये, नयन मेरे नीर बहाये |यू
अकेले रहा ही ना जाये, घर आओगे! कहो तो ?
रोज रोज निंद्रा में रात्रि, स्वप्न मे आते हो तुम ही |
किंतु क्या प्रिय स्वप्न ही, रह जाओगे ? कहो तो ?

Monday, May 13, 2024

साहित्य अर्पण

साहित्य अर्पण पिछले 5 साल से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्य कर रहा है। इसकी सी ई ओ आदरणीया नेहा शर्मा जी इसे दुबई से संचालित कर रही हैं। साहित्य अर्पण की नींव 17 फरवरी 2018 को दुबई में रखी गयी। इसका कार्य नवोदित व जाने माने रचनाकारों को मंच प्रदान करना है। साहित्य अर्पण अनेक स्तर पर हिंदी क्षेत्र में कार्य कर रहा है। 

साहित्य अर्पण समूह में समय समय पर बहुत से आयोजन होते रहते हैं। जिसमें प्रत्येक सप्ताह लेखन हेतु विषय भी दिया जाता है। यह लेखन आयोजन साहित्य अर्पण चित्राक्षरी व शब्दाक्षरी नाम से आयोजित होता है। इसके माध्यम से आपकी कलम को गति प्रदान करने व सोच को विस्तृत करने का कार्य करता है। 

साहित्य अर्पण मंच की ई पत्रिका भी निकलती है जो वेबसाइट saahityaarpn.com से प्रकाशित होती है। 

साथ ही मंच ने साहित्य की विभिन्न विधाओं की कक्षा भी सभी रचनाकारों के लिए व्यवस्थित की है।

इसके अलावा जो नियमित लिखते हैं व अपनी रचनाओं को नियमत रूप से एक बड़े प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित करना चाहते हैं जिससे उनकी रचनाओं को विस्तार मिले उन सभी के लिए साहित्य अर्पण ने विश्व स्तर पर वेबसाइट निर्मित की है जिस पर रचनाकार नियमित रूप से लिखकर अपनी रचना को शेयर कर सकते हैं। आप सब यदि लेखन करते हैं। या पढ़ना चाहते हैं। तो साहित्य अर्पण आपको यह सब वेबसाइट द्वारा चुटकियों में उपलब्ध करा देता है। 

अक्सर हम अपने लिखे हुए का बिना किसी के पढ़े आकलन नही कर पाते हैं। यह कार्य साहित्य अर्पण ने आसान बनाया समीक्षा द्वारा। लेखन कर उनके कार्यों की समीक्षा का मौका भी संस्था लेखन के द्वारा प्रदान करती है। 

साहित्य अर्पण द्वारा अब तक कई साझा संग्रह व एकल संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। जिनमें से अर्पण साहित्यञ्जलि जिसमें 30 रचनाकारों की रचनाएं सम्पादित हैं। अंतर्राष्टीय कॉफ़ी टेबल पुस्तक The Imaginary world of genius kids. जिसमें विदेश में रह रहे बच्चों ने अपनी लिखी रचनाएँ प्रेषित की है। व इस पुस्तक का। मुख्य भाग यह है कि इस पुस्तक में जो रिव्यु लिखा गया है वह बॉलीवुड अभिनेता चर्चित सीरियल लापतागंज के लल्लन जी राकेश श्रीवास्तव, बॉलीवुड एक्टर  यशपाल शर्मा जिन्होंने दादा लखमी, rowdy rathore, लगान और बहुत सी फिल्मों में कार्य किया है।, फेमस आर्टिस्ट राज वर्मा जो जानी मानी पत्रिका the refeelection के एडिटर हैं, व दिनेश वर्मा जी जो बहु चर्चित आर्ट वर्क के लिए जाने जाते हैं। ने मिलकर इस पुस्तक को ऊंचाई प्रदान की है। इस पुस्तक का बेस्ट पार्ट यह है की जितनी सुंदर पुस्तक है और उसमें बच्चों ने सुंदर रचनाएँ भेजी हैं। उतना ही सुंदर कार्य भारत और पाकिस्तान की शिक्षिकाएं जो दुबई में रह रही है। उन्होंने बच्चों का कार्य चयन करने में किया है। और एक लंबे प्रोसेस के बाद यह पुस्तक सफलतापूर्वक प्रकाशित हुई जिसका विमोचन दुबई में किया गया। 

उसके बाद 2 एकल संग्रह सुधीर अधीर की पुस्तक दो बूंद जिंदगी की और भावना सागर बत्रा की पुस्तक नारी मूल के पंच तत्व साहित्य अर्पण द्वारा प्रकाशित की गई। 

साहित्य अर्पण द्वारा आवाज को निखारकर उन्हें बाहर लाने का कार्य कहानी वाचन यानी storytelling कार्यक्रम द्वारा हो रहा है। कहानियां भाव की दुनिया जो ऑनलाइन कार्यक्रम है उसका तीसरा सीजन चल रहा है जिसमें रचनाकार अपनी कहानियां ऑनलाइन आकर सुनाते हैं। सिर्फ इतना ही नही साहित्य अर्पण द्वारा कहानी केंद्र का भी निर्माण किया गया जिसमें सुप्रसिद्ध लेखक की कहानी को रचनाकारों द्वारा आवाज दी जाती है। जिन्हें अमेजन म्यूजिक, जिओ सावन, spotify, you tube चैनल आदि पर आप सुन सकते हैं। यह सब प्रोसेस थोड़ा लम्बा होता है जिसमें रचनाकारों को आर जे द्वारा चुना जाता है उनकी ऑडियो को सुनकर।

कवि गॉष्ठी और कवि सम्मेलन चाहे वह ऑनलाइन हो या ऑफलाइन इसके विषय में तो आप सभी जानते ही हैं। फिलहाल साहित्य अर्पण द्वारा सभी जगह अलग अलग शाखाएं तैयार कर दी गयी हैं। जो अलग अलग स्तर पर कवि सम्मेलन व गॉष्ठी का कार्य सम्भाल रही हैं।

साहित्य अर्पण की नज़र से देखा जाए तो साहित्य का विस्तार इतना है कि इसको फैलाने में जितना प्रयास किया जाए वही कम है। रचनाकार सामने तो आते हैं उनको मंच भी दे दिया जाता है परन्तु कार्य की जो क्वालिटी है वह नही दे पाते हैं बाद उसी क्वालिटी को ढूंढकर मथने का कार्य साहित्य अर्पण कर रहा है। 

आशा है कि हम सबका यह कनेक्शन व साहित्य के साथ मिलकर कार्य करने का यह सफर यूंही अनवरत जारी रहेगा। हम साथ ही साहित्य अर्पण की सी ई ओ नेहा शर्मा का धन्यवाद ज्ञापन करते हैं कि उन्होंने हम सभी को एक सूत्र में बांधने का कार्य किया है। व साहित्य अर्पण का यह मंच खड़ा कर अनेकों कलमकारों की कलम को गति प्रदान की है। 

धन्यवाद
टीम साहित्य अर्पण।

Saturday, May 11, 2024

बात मिलने की करता है (ग़ज़ल)

बात मिलने की करता है।
पर ज़माने से डरता है।।
क्या भरोसा कातिल का हो।
आस्तीं खंजर रखता है।।
दर्द  हो ना जाए शाए ।
इसलिए वो संवरता है ।।
अब्र ना छलके आँखों  से।
अश्क चश्मों में रखता है ।।
रूह क्या जी कर पाएगा ।
मौत से पहले मरता  है ।।

रचना निम्नलिखित बह्र में है:
सरे_ मुसद्दस मसकन मक़तो मनहोर
फ़ाएलातुन मफ़ऊलुन फ़े
2122 222 2

Friday, May 10, 2024

गम भरी रात (ग़ज़ल)

गम भरी रात तू और मैं ।
दिल के जज़्बात तू और मैं ।।
याद करना फकत रस्म है 
हैं सदा साथ तू और मैं।।
कुछ न बौले न  कुछ भी सुना ।
कर गए बात तू और मैं ।।
मांगता हूं दुआ काश हो 
तेज बरसात तू और मैं।।
रूह जाए कहां दिल चुरा ।
मौन लम्हात  तू और मैं।।


रचना निम्नलिखित बह्र में है:

मुतदारिक मुसद्दस सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212212212

Thursday, May 9, 2024

राजनीति

कहीं ईट कहीं रोड़ा जोड़ना है राजनीति ।
इसे पकड़ना उसे छोड़ना है राजनीति।।
साम दाम दंड भेद, येन केन प्रकरेण।
विरोधियों का होसला तोड़ना है राजनीति।।
हाथ जोड़े तो भी मिलों न जिससे साल भर।
चुनाव में उसके हाथ जोड़ना है राजनीति ।।
जो दिख रहे हैं वही तो कह रही है कविता।
भावनाओं का तोड़ना मरोड़ना है राजनीति।।

Wednesday, May 8, 2024

इश्क़ का दरख्त

इक दरख़्त है
है मन के अंदर 
तेरे इश्क़ का ।

रूमानी डालियों पर 
अरमानों के पत्ते लहराते है,
तेरे रूप की धूप,
जुल्फों की हवा से
ज़िंदगी पाते हैं।

पर वो दिन था ना,
जब तुमने 
ना जानें क्यूं मूंह फेर लिया।

इश्क़ का ये दरख़्त 
सूखता जा रहा है,
अरमानों के पत्ते,
पीले से पड़ने लगे हैं,
कुछ सूख रहें हैं,
कुछ सूख कर गिर गए हैं।

जब तुम कभी भूले से
कदम रखोगी इस जानिब,
पैरों तले 
अरमानों के सूखे पत्तों 
की आवाज़ आयेगी,
पर क्या तुझ तक पहुंच पाएगी।

क्या पहुंच पाएगी ।

Sunday, May 5, 2024

छांव

आज जांभळी गांव से जूना महाबलेश्वर ट्रैक के दौरान कड़ी धूप में बीच बीच मे छांव के मिलने पर मेरी कविता

शहरों में धीमी मौत मर रही हैं छांव ।
जंगल में आराम कर रही हैं छांव ।।
ऊंचे ऊंचे दरख्तों के बीच  मे से।
कभी धूप, कभी बिखर रही हैं छांव ।।
बल खाती  जंगल की पगडंडियों से ।
घूमते टहलते उतर रही है छांव।।

**ऋषिकेश खोडके "रूह"**

Friday, May 3, 2024

रुक जाओ नटखट (**कवित्त**)

रुक जाओ नटखट, के निकालू तोरी होरी 
अखियां गुलाल गयो, भीगी मोरी चोली रै।
केस हुवे नीले हरे, लाल पीला रे मुखड़ा,
काहे छेडे नटखट, कर ना ठिठोली रै।
रुक रुक कहत मैं, बचन को "रूह" भागी,
पाछे भागो कान्हा हाय, खेलया रंगोली  रै।
अब तो प्रभु बचाए, पग जो आंगन पाए,
छुप रहूंगी कान्हा से, ना खेलूं होरी रै।